गिर रहा फिर आज पानी
दिसम्बर 18, 2010
ठिर रही है राजधानी
मोड़कर जलधार भारी
दी डुबो बस्ती पुरानी
हम हुए बेघर प्रलय में
बच गए वे खानदानी
हर तरफ खारा समंदर
प्यास पानी प्यास पानी
रक्तजीवी रक्त माँगे
क्या बुढ़ापा क्या जवानी
गाँव का सिर काटकर भी
शहर की कुर्सी बचानी
बाँधकर पत्थर डुबो दी
सत्य की अंतिम निशानी
मृत्यु की लहरें उफनतीं
जाग री सोई भवानी! [108]
4/11 /2009 .
आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी का सम्मान समारोह संपन्न
सितम्बर 27, 2010
ऋषभ देव शर्मा को आंध्र अकादमी का पुरस्कार प्राप्त
आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद [आंध्र प्रदेश] ने हिंदी दिवस की पूर्वसंध्या पर अकादमी भवन में हिंदी उत्सव का आयोजन किया और अच्छी धूमधाम से २०१० के हिंदी पुरस्कार सम्मानित हिंदीसेवियों तथा साहित्यकारों को समर्पित किए. एक लाख रुपए का पद्मभूषण मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार अष्टावधान विधा को लोकप्रिय बनाने के उपलक्ष्य में डॉ. चेबोलु शेषगिरि राव को प्रदान किया गया. तेलुगुभाषी उत्तम हिंदी अनुवादक और युवा लेखक के रूप में इस वर्ष क्रमशः वाई सी पी वेंकट रेड्डी और डॉ.सत्य लता को सम्मानित किय गया. डॉ. किशोरी लाल व्यास को दक्षिण भारतीय भाषेतर हिंदी लेखक पुरस्कार प्राप्त हुआ तथा विगत दो दशक से दक्षिण भारत में रहकर हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा के उपलक्ष्य में डॉ.ऋषभ देव शर्मा को बतौर हिंदीभाषी लेखक पुरस्कृत किया गया. इन चारों श्रेणियों में पुरस्कृत प्रत्येक लेखक को पच्चीस हज़ार रुपए तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया.
पुरस्कृत लेखकों ने ये सभी पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता शीर्षस्थ साहित्यकार पद्मभूषण डॉ. सी.नारायण रेड्डी के करकमलों से अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ.यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद , आंध्र प्रदेश के भारी सिंचाई मंत्री पोन्नाला लक्ष्मय्या तथा माध्यमिक शिक्षा मंत्री माणिक्य वरप्रसाद राव के सान्निध्य में ग्रहण किए.
इस अवसर पर बधाई देते हुए डॉ. सी नारायण रेड्डी ने साहित्यकारों का आह्वान किया कि हिंदी के माध्यम से आंध्र प्रदेश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को देशविदेश के हिंदी पाठकों के समक्ष प्रभावी रूप में प्रस्तुत करें. डॉ. यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद ने भी ध्यान दिलाया कि अकादमी का उद्देश्य केवल हिंदी को प्रोत्साहित करना भर नहीं बल्कि हिंदी के माध्यम से आंध्र प्रदेश के प्रदेय से शेष भारत और विश्व को परिचित कराना है.
सम्मान के क्रम में सबसे पहले डॉ. सी.नारायण रेड्डी ने पुष्पगुच्छ दिया. और फिर प्रशस्तिपत्र, स्मृतिचिह्न एवं सम्मानराशि प्रदान की गई.
भारी वर्षा के बावजूद इस आयोजन में भारी संख्या में हिंदीप्रेमी उत्साहपूर्वक सम्मिलित हुए. डॉ. सी.नारायण रेड्डी ने अपनी हिंदी ग़ज़ल भी सुनाई -‘बादल का दिल पिघल गया तो सावन बनता है.’ सरकारी आयोजन था.सो, मीडिया वाले भी कतारबद्ध थे. अगले दिन हिंदी, तेलुगु और अंग्रेजी के समाचारपत्रों में तो छपा ही, चैनलों पर भी दिखाया गया. आंध्र के हिंदीपरिवार की एकसूत्रता और आत्मीयता पूरे आयोजन में दृष्टिगोचर हुई. इस बहाने कुछ क्षण मिलजुलकर हँसने-मुस्कराने के भी मिले.<चित्रावली>
पुरखों ने कर्ज लिया, पीढ़ी को भरने दो
मई 7, 2009
पुरखों ने कर्ज लिया, पीढ़ी को भरने दो
अपराधी हाथों की, जासूसी करने दो
कर रहा हवा दूषित, भर रहा नसों में विष
मत तक्षक को ऐसे, उन्मुक्त विचरने दो
आया था लोकतंत्र, वर्षों से सुनते हैं
छेदों से भरी-भरी, नौका यह तरने दो
यातना-शिविर जिसने, यह शहर बनाया है
पापों का धर्मपिता , मुख आज उघरने दो
जनगण के प्रहरी बन, सड़कों पर निकलो तुम
लो लक्ष्य बुर्जियों के, द्रोही सब मरने दो [107]
जलती बारूद बनो अब बुर्जों पर छाओ रे
मई 7, 2009
जलती बारूद बनो अब बुर्जों पर छाओ रे
हर बुलडोज़र के आगे पर्वत बन जाओ रे
इन खेतों में आँगन को यूँ कब तक बाँटोगे?
मंदिर में सिज़्दे, मस्जिद में प्रतिमा लाओ रे
ये टूटे दिल के नग्मे गाने से क्या होगा?
ज़ालिम मीनारें टूटें कुछ ऐसा गाओ रे
‘गा’ गोली, ‘बा’ बंदूकें, ‘खा’ से खून-पसीना
‘रा’ रोटी, ‘आ’ आग और ‘ला’ लहू पढ़ाओ रे
अब और न तश्तरियों में यह ज़िन्दा मांस सजे
रोटी के हक़ की ख़ातिर तलवार उठाओ रे [106]
कच्ची नीम की निंबौरी, सावन अभी न अइयो रे
मई 2, 2009
कच्ची नीम की निंबौरी, सावन अभी न अइयो रे
मेरा शहर गया होरी, सावन अभी न अइयो रे
कर्ज़ा सेठ वसूलेगा, गाली घर आकर देगा
कड़के बीजुरी निगोरी, सावन अभी न अइयो रे
गब्बर लूट रहा बस्ती, ठाकुर मार रहा मस्ती
है क्वाँरी छोटी छोरी, सावन अभी न अइयो रे
चूल्हा बुझा पड़ा कब का, रोजा रोज़ाना सबका
फूटी काँच की कटोरी, सावन अभी न अइयो रे
छप्पर नया बना लें हम, भर लें सभी दरारें हम
मेघा करे न बरजोरी, सावन अभी न अइयो रे
खुरपी ले आए धनिया, जग जाएँ गोबर-झुनिया
हँसिया ढूँढ़ रही गोरी, सावन अभी न अइयो रे (105)
हो गए हैं आप तो ऋतुराज होली में
मई 2, 2009
हो गए हैं आप तो ऋतुराज होली में
वे तरसते रंग को भी आज होली में
काँख में खाते दबाए आ गया मौसम
खून से वे भर रहे हैं ब्याज होली में
चौक में है आज जलसा भूल मत जाना
भूख की आँतें बनेंगी साज होली में
हर गली उद्दण्डता पर उतर आई है
खुल न जाए राजपथ का राज़ होली में
कब कई प्रह्लाद लेंगे आग हाथों पर ?
कब जलेगी होलिका की लाज होली में ? (104)
हादसे अब घटने चाहिएँ
मई 2, 2009
हादसे अब घटने चाहिएँ
यार ! बादल छँटने चाहिएँ
कुर्सी मरखनी हो गई है
इसके सींग कटने चाहिएँ
पढ़ो ‘रा’ से रोटी, रथ नहीं
श्रम के गीत रटने चाहिएँ
भरे गोदाम से अनाज के
पहरे सभी हटने चाहिएँ
‘जनगण की छातियों में दफ़न
ज्वालामुखी फटने चाहिएँ (103)
हर दफ्तर में एक बड़ी सी, कुर्सी पाई जाती है
मई 2, 2009
हर दफ्तर में एक बड़ी सी, कुर्सी पाई जाती है
जिसके आगे बड़े-बड़ों की, कमर झुकाई जाती है
अंग्रेज़ों की बात नहीं है, यह अपना ही शासन है
सुनो ! पेट की ख़ातिर रेहन, रीढ़ धराई जाती है
मछुआरा हर बॉस यहाँ पर, बाँसी-काँटा थामे है
रोज़ी का संकट भारी है, देह भुनाई जाती है
ठाली अफ़सर, खाली दफ्तर, घूम-घूमकर देखा है
गाल बजाए जाते हैं या, जय-जय गाई जाती है
सहने की सीमा होती है, कितना और सहें, यारो!
क्यों जनता कुलवधू बिचारी , मौन सताई जाती है
उठो, सत्य के पहरेदारो ! तोड़ झूठ के मयखाने
सौ-सौ संगीनें उठने पर, कलम उठाई जाती है (102)
हमलावर शेरों को चिंता में डाला है
मई 2, 2009
हमलावर शेरों को चिंता में डाला है
हिरनी की आँखों में प्रतिशोधी ज्वाला है
सागर में ज्वार उठें, लहरें तेवर बदलें
अवतरित हो रही जो, यह जागृति-बाला है
पृष्ठों पर आग छपी, सनसनी हाशियों पर
अख़बारों ने संध्या-संस्करण निकाला है
सदियों ने बहुत सहा शूली चढ़ता ईसा
हाथों में कील ठुकी, होठों पर ताला है
सड़कों पर उतरी है सुकराती-भीड़ यहाँ
मीरा-प्रह्लादों को प्यारा यह प्याला है (101)
हटो, यह रास बंद करो
मई 2, 2009
हटो, यह रास बंद करो
हास-परिहास बंद करो
यह कलम है, खुरपी नहीं
छीलना घास बंद करो
गूँजती युद्ध की बोली
खेलना ताश बंद करो
भूख का इलाज बताओ
यार! बकवास बंद करो (100)